Home रायगढ़ महानिर्वाण दिवस पर विशेष : राष्ट्र निर्माण हेतु समर्पित रहा पूज्य अघोरेश्वर का जीवन

महानिर्वाण दिवस पर विशेष : राष्ट्र निर्माण हेतु समर्पित रहा पूज्य अघोरेश्वर का जीवन

by P. R. Rajak
0 comment

रायगढ़। पूज्य अघोरेश्वर का पूरा जीवन पीडि़त मानव सेवा के लिए समर्पित रहा। दशकों बाद आज पूज्य अघोरेश्वर के विचार आधुनिक समाज के लिए प्रासंगिक साबित हो रहे है।भगवान राम का जीवन राष्ट्र निर्माण एवं पीडि़त मानव की सेवा हेतु समर्पित रहा। मानव सेवा के जरिए पूज्य अघोरेश्वर ने जो समाज के लिए पद चिन्ह छोड़े वे पथ प्रदर्शक साबित हो रहे है। दुखी मनुष्य जीवन पर सुखों की तलाश में यत्र तत्र भटकता है दुखो से निजात पाने के तरीके खोजता है।
पूज्य अघोरेश्वर ने मानव समाज के सामने जीवन जीने का सहज सूत्र रखा । अघोरेश्वर ने बताया कि बाहर शांति की तलाशने की बजाय अभ्यंतर में मौजूद शांति का अनुभव करे। शांति को तलाशा नहीं जा सकता। शांति की तलाश में मनुष्य नई समस्याओं से घिर जाता है। पूज्य अघोरेश्वर के शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम के कर कमलों से स्थापित अघोर गुरुपीठ बनोरा अघोरेश्वर महाप्रभु के आत्म अनुभूति का पावन स्थली है। बनोरा ऐसी पावन स्थली बन गई जहाँ पूज्य अघोरश्वर के वचनों की अमृत धारा प्रवाहित हो रही है जिसका अमृतपान कर मनुष्य स्वयं के जीवन को धन्य कर रहे है। अघोरेश्वर महाप्रभु ने मानव समाज को जीवन का व्यवहारिक मार्ग बताते हुए कहा कि जीवन के लिए धन संपदा एवं साधन सब कुछ नश्वर है लेकिन मनुष्य के विचार सदा अजर अमर है। जहां मनुष्य की उपस्थिति नहीं होती वहां उसके गुण या विचार उसका प्रतिनिधित्व करते है।
पूज्य अघोरेश्वर का मानना था कि हर मनुष्य परिवार की छोटी इकाई है और परिवार समाज की इकाई और समाज राष्ट्र की इकाई है इसलिए एक एक व्यक्ति के विचार एवं कार्य राष्ट्र के लिए महत्पूर्ण होते है। देश ऐसे महान संत के योगदान को कभी विस्मृत नही कर सकता। आज के ही दिन इस नश्वर संसार से विदा लेने वाले अघोरेश्वर सशरीर भले ही हमारे मध्य न हो लेकिन वैचारिक रूप से उनके सिद्धांत हर अघोरपंथी के हृदय में मौजूद है। उन्होंने बताया कि आशक्ति से परे आत्मा जन्म मृत्यु में बंधन से भी परे होती है। अलग अलग परिणामों के जरिए ही सफलता एवं असफलता परिभाषित होती है। किसी भी कार्य के परिणाम से मिलने वाला सुख दुख का अनुभव शरीर को होता है। यह शरीर आत्मा के लिए चोले के समान है जैसे निश्चित समय के बाद कपड़े बदलना आवश्यक हो जाता है वैसे ही एक निश्चित समय के बाद आत्मा को भी शरीर का चोला बदलना आवश्यक हो जाता है। इससे पहले यह चोला बदल जाये अगली जीवन यात्रा शुरू जो जाए मनुष्य को अपने अतीत को भुलाते हुए वर्तमान की भूमि में सद्कर्मों के बीज बोने चाहिए ताकि आने वाले भविष्य में उसका परिणाम उसके लिए अच्छा हो। लोग मानते है कि ईश्वर भाग्य का निर्माता होता है जबकि पूज्य अघोरेश्वर ने बताया मनुष्य के कर्म से ही उसका भाग्य बनता है।
अघोरेश्वर महाप्रभु का जीवन अद्धुत एवं विविधताओं से भरा हुआ रहा। 25 वर्ष की अपार साधनाओ की चरम उपलब्धियों से परिपूर्ण सिद्धियों और शक्तियो की साधना के जरिये अघोरेश्वर ने 27 सितंबर 1961 में ही सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की और समाज के लिये उपेक्षित, तिरस्कृत समझे जाने वाले कुष्ठ रोगियो को अपार स्नेह के साथ प्रेम पूर्वक गले लगाया। वाराणसी के पड़ाव में भगवान राम कुष्ठ सेवाश्रम कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिये ऐसी पवित्र पावन गंगा बन गई जिसमें डूबकी लगाकर कुष्ठरोगी अपना रोग आसानी से मिटा सकते थे। आज सर्वेश्वरी समूह की अनेक शाखएं कुष्ठ रोगियों की सेवा में लगी है। जिनमे पड़ाव के रायबरेली का प्रमुख स्थान है। आज के ही दिन उन्होंने इस नश्वर संसार से विदाई ली और समाज के लिए विचारों का अदभुत खजाना छोड़ गए।
परम पूज्य भगवान राम के महानिर्माण दिवस पर आयोजन
परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम के महानिर्वाण दिवस पर प्रात: 8 .38 बजे सामूहिक आरती 9.00 बजे से सफल योनि का पाठ, प्रात: 10 बजे से भजन कीर्तन,अपराह्न 12 बजे से 3 बजे तक प्रसाद वितरण होगा

Related Articles

Leave a Comment