*जीवन का सर्वोत्तम अनुशासन है राजयोग – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
*
*भावना व विवेक के संतुलन से किया गया कर्म ही समत्व योग है…*
*गीता ज्ञान शिविर के चौथे दिन: कर्म की श्रेष्ठता और ज्योति-स्वरूप परमात्मा के अवतरण पर गहन विवेचना*
*सारंगढ़, 01 दिसम्बर 2025*:-
ब्रह्माकुमारीज़ प्रभु पसन्द भवन सारंगढ़ द्वारा आयोजित सात दिवसीय *गीता ज्ञान शिविर* के चौथे दिन राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी **मंजू दीदी** (बिलासपुर) ने श्रीमद् भगवद् गीता के तृतीय एवं चतुर्थ अध्याय के आधार पर जीवन में कर्म, समत्व और परमात्मा के वास्तविक स्वरूप पर विस्तृत प्रकाश डाला।
दीदी ने कहा कि **गीता का मूल संदेश कर्म की अवश्य-भाविता* है—“कर्म के बिना कोई भी आत्मा क्षणभर नहीं रह सकती।” उन्होंने बताया कि गीता में वर्णित सभी योग—ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग, समत्व योग, हठ योग और बुद्धि योग—जीवन को श्रेष्ठ दिशा देने वाले हैं, परंतु विवेक (ज्ञान) और भावना (भक्ति) का संतुलन बनाकर किया गया कर्म ही *समत्व योग* कहलाता है।
*समत्व योग: बिना आसक्ति का श्रेष्ठ कर्म*
दीदी ने स्पष्ट किया कि श्रेष्ठ कर्म वही है जहां अहंकार या अंधविश्वास न हो। ऐसा योगी वह है जो मन द्वारा ज्ञानेंद्रियों को संयमित करे और कर्मेंद्रियों से बिना आसक्ति के श्रेष्ठ कर्म में संलग्न रहे। उन्होंने कहा कि ज्ञानवान व्यक्ति पर *लोक-संग्रहार्थ कर्म* करने की विशेष जिम्मेदारी होती है।
*यज्ञ का वास्तविक अर्थ और राजयोग की सरल विधि*
दीदी ने यज्ञ की आध्यात्मिक व्याख्या समझाते हुए बताया कि जौ, तिल और घी की आहूति का सूक्ष्म अर्थ है— *जौ तन*, *तिल मन*, और *घी धन* का प्रतीक। अत: वास्तविक यज्ञ का अर्थ है *तन, मन और धन को शुभ कर्मों में समर्पित करना*।
इसी के साथ परमात्मा द्वारा बताए गए सहज मार्ग **राजयोग** को जीवन का सर्वोत्तम अनुशासन बताते हुए उन्होंने कहा कि राजयोग का अर्थ है आत्मा की सूक्ष्म शक्तियों – मन, बुद्धि और संस्कार पर अपना राज स्थापित करना।
*परमात्मा का ज्योति-स्वरूप और दिव्य अवतरण*
चतुर्थ अध्याय की व्याख्या में उन्होंने कहा कि परमात्मा *अजन्मा*, *अविनाशी* और *ज्योति-स्वरूप* हैं जिन्हें सर्व धर्मों में विभिन्न नामों से स्वीकारा गया है— महेश्वर, ईश्वर, नूर, एक ओंकार, प्रकाश आदि। उनका दिव्य प्रादुर्भाव तब होता है जब अधर्म बढ़ जाता है।
उन्होंने बताया कि कलियुग के अंत में परमात्मा साधारण मानव तन का आधार लेकर ज्ञान देते हैं।
*शाश्वत राजयोग का पुनर्स्थापन*
दीदी ने कहा कि यह राजयोग का ज्ञान परमात्मा सबसे पहले सूर्य को, फिर मनु को और मनु से इक्ष्वाकु को देते हैं। समय के प्रवाह में यह ज्ञान लुप्त हो गया था, जिसे परमात्मा पुनः स्थापित करते हैं। सन्यास गीता का मुख्य मार्ग नहीं, बल्कि गीता सिखाती है— *विकारों का त्याग और गुणों की धारणा*।
उन्होंने बताया कि 1936 में दादा लेखराज को दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई और 1937 में *प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय* की स्थापना हुई, जिसके माध्यम से परमात्मा आत्माओं को दैवी गुणों से संपन्न देवत्व स्वरूप बनाने का कार्य करा रहे हैं।
स्थानीय सेवा केंद्र प्रभारी कंचन दीदी ने सभी को सेवा केंद्र आने व इस अनुपम अवसर का लाभ लेने का आह्वान किया है।


