Home रायगढ़ हमारा अधिकार केवल कर्म पर फल की चिंता मन को अस्थिर करती है – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी**

हमारा अधिकार केवल कर्म पर फल की चिंता मन को अस्थिर करती है – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी**

by P. R. Rajak Chief Editor
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**हमारा अधिकार केवल कर्म पर फल की चिंता मन को अस्थिर करती है – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी**

*सारंगढ़ के ब्रह्माकुमारीज़ प्रभु पसंद भवन में ‘गीता ज्ञान सत्र’ का आयोजन – तीसरे दिन द्वितीय अध्याय पर गहन मंथन**

**सारंगढ़, 30 नवंबर 2025* :-
ब्रह्माकुमारीज़ फुलझरियापारा, सारंगढ़ के तत्वावधान में और ब्रह्माकुमारी कंचन दीदी के निर्देशन में आयोजित *“गीता की राह – वाह जिंदगी, वाह”* शिविर के अंतर्गत तीसरे दिन द्वितीय अध्याय पर मनन चिंतन हुआ। सत्र का संचालन बिलासपुर से पधारीं राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने किया।

*आत्मा का अविनाशी स्वरूप समझाया*
सत्र की शुरुआत आध्यात्मिक स्वरलहरियों के साथ हुई। मंजू दीदी जी ने गीता के अनुसार आत्मा को *अजर-अमर, शुद्ध और ज्योति स्वरूप* बताते हुए कहा कि आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा शरीर परिवर्तन करती है।

*कर्मयोग और समभाव की प्रेरणा*
गीता के प्रसिद्ध संदेश *“कर्मण्येवाधिकारस्ते…”*का सार समझाते हुए दीदी जी ने कहा कि मनुष्य का अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं। फल की चिंता मन को अस्थिर करती है, जबकि समत्व बुद्धि* जीवन को संतुलित बनाती है। उन्होंने बताया कि शांत, स्थिर और सकारात्मक मन ही श्रेष्ठ निर्णय ले सकता है।

*स्थितप्रज्ञ के गुणों पर प्रकाश*
अध्याय के प्रमुख भाग *‘स्थितप्रज्ञ’* के लक्षणों को सरल उदाहरणों के साथ समझाया गया। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति सुख-दुःख में समान, राग-भय-क्रोध से मुक्त और आत्मिक शक्ति से भरा होता है, वही **स्थितप्रज्ञ** कहलाता है। दीदी जी ने स्पष्ट किया कि-
*“कमजोर मन परिस्थितियों को बड़ा बनाता है, और शक्तिशाली मन परिस्थिति को अवसर में बदल देता है।”**

*मन को सशक्त बनाने सत्संग, श्रेष्ठ साहित्य और नियमित मेडिटेशन जरूरी…*
मन की चंचलता और इच्छाओं पर नियंत्रण के लिए उन्होंने कहा कि सत्संग, श्रेष्ठ साहित्य और नियमित मेडिटेशन ही मनुष्य को आत्म-शक्ति प्रदान करते हैं। दीदी जी ने आंतरिक शांति और भावनात्मक मजबूती को आज के युग की अनिवार्यता बताया।

सत्र के अंत में दीदी ने बतलाया कि आने वाले दिनों में गीता के तीसरे से लेकर सत्रहवें अध्याय तक का क्रमशः अध्ययन कराया जाएगा तथा अंतिम दिन अठारहवें अध्याय का समापन सत्र होगा। साथ ही मिथलेश दीदी ने सभी को सारंगढ़ में नव-स्थापित सेवा केंद्र में प्रतिदिन होने वाले ज्ञान सत्रों में सहभागी बनने का आमंत्रण दिया।

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