रायपुर, आरंग और राजिम के त्रिकोण में है चंपारण
सारंगढ़ बिलाईगढ़, 2 अगस्त 2025/भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योर्तिलिंग सहित अन्य प्राचीन शिव मंदिर धार्मिक पर्यटन क्षेत्र है। शिव मंदिर में सावन माह में भक्तों की भीड़ भरी रहती है।
छत्तीसगढ़ में भी पुराणों में वर्णित
महादेव भोलेनाथ का मंदिर है जो रायपुर के नजदीक चम्पारण स्थान पर है। यह दो चीजों के लिए बहुत ही प्रसिद्द हैं, पहला चम्पेश्वर महादेव मंदिर और दूसरा पुष्टि वंश के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्मस्थली। यह जगह पंचकोशी यात्रा (पंचकोशी यात्रा – फणेश्वर, चम्पेश्वर, बम्हनेश्वर, कोपेश्वर, पटेश्वर) में से एक हैं।
चम्पारण्य, महानदी तट पर स्थित है। यह रायपुर से संबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग और रायपुर से जगदलपुर सड़क मार्ग के मध्य, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 50 किमी दक्षिण पूर्व, आरंग और पारागांव से 22 किमी दूर एवं राजिम से 15 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित हैं। शिव भक्त इस महादेव मंदिर में महानदी का जल चढ़ाते हैं एवं पूजा-अर्चना करते हैं। लगभग 6 एकड़ में फैला यह चम्पारण मंदिर, बहुत ही शांत वातावरण में हमेशा रहता हैं।
पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित, 800 वर्ष पूर्व घनघोर जंगल में गांव का ग्वाला, गायों को लेकर जंगल की ओर घास चराने के लिए जाता था। एक दिन वह रोज की तरह गांव की सभी गाय को जंगल की तरफ ले गया, लेकिन जब शाम को वापस गायों को गौशाला ला रहा था, तभी अचानक गायों के झुण्ड में से राधा नामक बांझोली गाय रम्भाती हुई घनघोर जंगल की ओर भाग निकली। उस वन में पेड़-पौधों की सघनता इतनी अधिक थी की वहां कोई घुस जाये, तो कुछ भी दिखाई नहीं देता था। राधा बांझेलि गाय रोज सुबह-शाम इसी तरह उस घनघोर जंगल में भाग जाया करती थी। ऐसा करते हुए पूरा एक सप्ताह हो गया। ग्वाला चरवाहा सोच में पड़ गया की आखिर यह गाय रोज जंगल की ओर क्यों भाग जाती हैं। उसके मन में एक कौतुहल पैदा हो गया की आखिर बात क्या हैं? एक दिन वह ग्वाला उसके पीछे हो लिया। जंगल सघन और घनघोर होने और लता-बेल की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए ग्वाला चरवाहा ने देखा की एक शमी वृक्ष के नीचे खड़ी राधा बांझेलीं गाय के थान से दूध सतत धार के अद्भुत लिंक के ऊपर गिर रही हैं। उस गवाला ने गांव में जाकर बताया लेकिन किसी ने यकीं नहीं किया, कुछ गांव वालों ने इस कथन को जांचने के लिए उस ग्वाले के साथ अगले दिन चले गए। उन्होंने देखा की गाय भगवान् शिव के लिंग विग्रह, त्रिमूर्ति जिस पर के महादेव, माता पार्वती एवं गणेश जी प्रतिबिंबित थे, उस परअपने थनों से अजस्र दूध प्रवाहित कर रही थी। बाद में मंत्रोच्चर पूजा आराधना की गई। गांव में बैठकर भगवान् महादेव के देवस्थल को अनावृत्त किया गया। बहुत दिनों बाद में झोपडीनुमा मन्दिर के स्थान पर पक्का मंदिर बनाया गया, जो प्राचीन तीर्थ स्थल श्री चम्पेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्द है।
श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी के जन्म की कहानी
दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के तट पर स्तभाद्रि के निकट स्थित अग्रहार में अगस्त्य मुनि के वंशज कुम्भकार हुए। कालांतर में वे काकखंड में आकर बस गए तथा परिवार सहित तीर्थ यात्रा पर निकल कर काशी पहुंचे।काशी पर मलेच्छों के आक्रमण के कारण वे सब वापस अपने मूल स्थान की ओर चल पड़े। मार्ग में राजिम नगरी के निकट चंपाझर नमक ग्राम में श्री चम्पेश्वर महादेव के दर्शनार्थ यहाँ पधारे। यही महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की माता वल्लमागारु ने संवत 1535 की वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी रविवार (ई. 1479) की रात्रि एक बालक को जन्म दिया। नवजात बालक के जीवन की आशा कम होने की संभावना परिलक्षित हुई, जिससे बालक को शमी पेड़ की कोटर में छोड़कर आगे निकल पड़े। दूसरे दिन ही वापस आकर बालक की तलाश की, तो देखा की स्वयं अग्निदेव बालक की रक्षा कर रहे हैं। वल्लभ, यही बाल आगे चलकर श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य हुए।
