घरघोड़ा। छत्तीसगढ़ सरकार ने बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में एक ऐतिहासिक निर्णय लेकर डीएमएफ (जिला खनिज न्यास निधि) के उपयोग को लेकर केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार न्यूनतम 70% राशि खनिज प्रभावित क्षेत्रों में खर्च करने की स्वीकृति दी है। यह वही मांग है, जिसे लेकर युवा मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष रवि भगत लगातार आवाज़ बुलंद करते आ रहे थे।सरकार के इस फैसले ने न सिर्फ रवि भगत की नीति और नियत को सही ठहराया है, बल्कि भाजपा में उभर रही नई और ज़मीनी नेतृत्व शक्ति का भी दमदार परिचय दिया है।
बताया जाता है कि विगत वर्षों में शहरी क्षेत्रके प्रभावशाली नेताओं और ठेकेदारों के गठजोड़ से डीएमएफ फंड खर्च किए जाते रहे। वास्तविक हकदार खनिज प्रभावित ग्रामीण क्षेत्र होते हुए भी उसका समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा था।कैबिनेट के इस फैसले के बाद फुटपाथ ब्रिज, शहरी टॉयलेट, मॉल जैसी दर्जनों योजनाओं पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं, जो डीएमएफ के उद्देश्य से पूरी तरह विपरीत हैं।
धरमजयगढ़, लैलूंगा, खरसिया को अब मिलेगा हक – विकास की नई उम्मीद
फैसले के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि वे क्षेत्र जो वास्तव में खनिज दोहन से प्रभावित हैं । जैसे घरघोड़ा, धरमजयगढ़, लैलूंगा, खरसिया, अब सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, जल आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं में वास्तविक सुधार देखेंगे। बताया जाता है कि रवि भगत की साहसिक पहल और जनप्रतिनिधित्व ने वर्षों से वंचित आदिवासी क्षेत्रों की आवाज को सरकार तक पहुंचाया और उन्हें सच्चा न्याय दिलाने की दिशा में कदम बढ़ाया।
नई वैचारिक रेखा – रवि भगत बनकर उभरे नई पीढ़ी की पहचान
इस घटनाक्रम ने भाजपा के भीतर भी एक गंभीर वैचारिक टकराव को उजागर किया है । एक ओर वे वरिष्ठ नेता जो वर्षों से राजनीतिक समीकरणों और सत्ताधारी समीपता के आधार पर डीएमएफ फंड का बंटवारा करते रहे।दूसरी ओर युवा और निडर युवा मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष रवि भगत, जो बिना किसी भय के अपने क्षेत्र की आवाज को सबसे ऊंचे मंच पर उठा रहे हैं।यह न केवल एक नीतिगत जीत है, बल्कि छत्तीसगढ़ में नई राजनीतिक सोच और जवाबदेही की शुरुआत भी है।
क्या जमीनी हकीकत बदलेगी?
अब सवाल यह है कि क्या यह फैसला केवल कैबिनेट की फाइलों तक सीमित रहेगा, या वास्तव में जमीनी क्रियान्वयन तक पहुंचेगा?
जनता की निगाहें अब सिर्फ सरकार पर नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की पारदर्शिता पर भी टिकी हैं।